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एक पत्र – सखी, आज मत खेल होली …

कोसीर ...ग्रामीण मित्र !
कोसीर ...ग्रामीण मित्र !
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आज सुंदर लग रही है रंगों से जो तू सजी है
होली ,के रंग में जो रंग गई है गांवली
पड़ोसन भी तुमसे आज जलने लगे है
सखी ,आज मत खेल होली
मेरे गाँव की होली तुम बीन अधूरा है
कैसे सन्देश भेजूं मै
मेरा मन सूना है
हाँ तुम सज -धज कर तैयार रहना
न आ पाऊं तो
मेरे तस्वीर पर गुलाल मलना
बसंत की हवा ,पतझड़ की आहट कुछ कहती है
आ जाओ सजन मन की आहट कुछ कहती है
० लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल “

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